📝 रिपोर्ट: दिलीप जोशी, क्राइम रिपोर्टर | नेशनल टाइम न्यूज़
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश:
सदियों पुरानी परंपरा और आस्था का प्रतीक कुंभ मेला इस बार राजनीतिक अखाड़े में तब्दील होता दिख रहा है। जहां उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार कुंभ के आयोजन को ऐतिहासिक और “दुनिया का सबसे व्यवस्थित आयोजन” बता रही है, वहीं विपक्षी दल खासकर समाजवादी पार्टी ने इस पर सवालों की झड़ी लगा दी है।
🗓 आखिरी शाही स्नान से पहले सियासी संग्राम
26 फ़रवरी, महाशिवरात्रि के दिन आखिरी शाही स्नान से ठीक पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रेस वार्ता कर योगी सरकार पर भ्रष्टाचार और कुंभ में अव्यवस्थाओं के गम्भीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि करोड़ों की लागत से बने कई टेंट्स, सड़कें और बुनियादी ढांचे महज़ दिखावा हैं और इनमें गहरी वित्तीय गड़बड़ियाँ हुई हैं।
“यह मेला श्रद्धा का नहीं, कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार का बन गया है। जनता के पैसे का दुरुपयोग हुआ है,” — अखिलेश यादव, प्रेस वार्ता में।
📸 ज़मीनी हकीकत क्या कहती है?
नेशनल टाइम न्यूज़ की टीम ने जब कुछ शिविर क्षेत्रों, टेंट नगरी और स्नान घाटों का दौरा किया, तो कई जगह अधूरी सुविधाएं, टूटे-फूटे वॉशरूम और अव्यवस्थित मार्ग देखने को मिले। कई साधुओं और श्रद्धालुओं ने भी साफ-सफाई, जल आपूर्ति और चिकित्सा सुविधाओं को लेकर शिकायतें दर्ज कीं।
📊 भ्रष्टाचार के आरोप — कितने गहरे?
समाजवादी पार्टी का दावा है कि कुंभ आयोजन में कम से कम ₹4,200 करोड़ का बजट खर्च हुआ, जिसमें से बड़ी राशि “नियमों को दरकिनार कर निजी ठेकेदारों की जेब में चली गई।” अखिलेश यादव ने एक स्वतंत्र जांच की मांग की है और कहा कि अगर उनकी सरकार आती है तो वह इसकी सीबीआई जांच कराएंगे।
🧮 राजनीतिक रूप से किसे कितना नफ़ा-नुक़सान?
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योगी सरकार:
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फायदा: आस्था और राष्ट्रवाद के नाम पर बड़ा वर्ग उनके साथ खड़ा है।
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नुक़सान: यदि भ्रष्टाचार के आरोपों को जनसमर्थन मिला, तो छवि को गहरा धक्का लग सकता है।
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अखिलेश यादव और विपक्ष:
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फायदा: मुद्दा उठाकर सरकार को घेरने का अवसर।
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नुक़सान: अगर जनता को आरोप खोखले लगे, तो “सिर्फ विरोध के लिए विरोध” की छवि बनेगी।
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🕉️ श्रद्धा vs सत्ता का संघर्ष
कुंभ एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, लेकिन समय-समय पर यह सियासी रंग भी लेता आया है। इस बार भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है — श्रद्धा के सागर में सत्ता की लहरें तेज़ हो चली हैं।